शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

इंसानियत

 इंसानियत


तुलसी स्कूल जाया करती

पढ़ लिखने का सोचा करती

बड़े होकर कुछ बनना है

मां बापू की गरीबी हरना है


समय कष्टकर ऐसा आया

 आशाओं पर पानी फिराया

लॉक डाउन बनी मजबूरी है

घर मे गरीबी मानो पसरी है


सांसो की इक डोर बंधी है

पेट भरना भी जरूरी है

आम बेचकर जीवन यापन

पढ़ाई तो बन गई सपन


ठीक नही घर के हालात

मोबाइल मिले तो बने बात

नजर पड़ी भले मानुष की

लिए आम सारे लाखो देकर


तुलसी अब पढ़ पाएगी

इंसानियत का सबक सीखकर

अमेया हेटे को करे नमन

संवारे और तुलसियो का जीवन


   शीला अशोक तापड़िया

       30 जून 2021

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