इंसानियत
तुलसी स्कूल जाया करती
पढ़ लिखने का सोचा करती
बड़े होकर कुछ बनना है
मां बापू की गरीबी हरना है
समय कष्टकर ऐसा आया
आशाओं पर पानी फिराया
लॉक डाउन बनी मजबूरी है
घर मे गरीबी मानो पसरी है
सांसो की इक डोर बंधी है
पेट भरना भी जरूरी है
आम बेचकर जीवन यापन
पढ़ाई तो बन गई सपन
ठीक नही घर के हालात
मोबाइल मिले तो बने बात
नजर पड़ी भले मानुष की
लिए आम सारे लाखो देकर
तुलसी अब पढ़ पाएगी
इंसानियत का सबक सीखकर
अमेया हेटे को करे नमन
संवारे और तुलसियो का जीवन
शीला अशोक तापड़िया
30 जून 2021
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