शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

श्रम गीत

 श्रम गीत

गीत गाले  तु गुनगुना ले 

श्रम का भार तू भुला ले

जिसने गाया गुनगुनाया

भार हीन स्वयं को पाया


मल्लाह जब नांव चलता

चप्पू पानी  भेदे जाता

दुखो को पीछे ठेलकर

गीत गाकर राह बनाता


गांव की या ब्रज की वनिता

छाछ घर मे वो बिलोती

मीत बनकर गीत पिरोती

दुविधायें पार कर जाती


मनोभाव शब्दो मे सजाते

गीत आनंद का वो बनाते

सुरीला गीतों का  ये जादू

उत्सव उत्साह का बनाते

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