[14/6, 1:10 PM] Sheela Tapadia: बादल संग
गुनगुनाती शाम
बरस गई
कलम चली
लिख गई कहानी
अनकही सी
उसने लिखी
प्यार की इबारत
बिखरे मोती
लुभाता रहा
बरसता सावन
मन सरसा
अथक श्रम
मंजिल दूर नही
कहता मन
उषा किरण
लिख रही पैगाम
सुर्य के नाम
धरा की प्यास
उजडे उपवन
मेघो की आस
पडेंगें झूले
सावन को आने दो
मुदित मन
शीतल छाया
वृक्ष हमकों देते
मोल न लेते
अमृत धारा
स्नेह अनवरत
मधुर बोल
इठलाकर
बरखा संग बूंदे
झूमती फिरि
किलककर
मेघराज झूमते
है मनमौजी
हुलसकर
बादल गरजते
हवलदार
फिसलकर
बून्द शबनम की
मोती लगती
बिखरकर
सतरंग छटाएं
बेलबूटों से
बरसकर
ये बाबरे बदरा
नशा उतारे
धानी चुनर
वसुधा पहनकर
मिली मेघ से
पागल हवा
गोरी की चुनर को
चूमती फिरे
धूसर रंग
आसमां चारपाई
मेघ बिछोना
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