बरसा प्यार
अम्बर धरती का
जा गले मिले
भूल बैर पुराने
ये दो दोस्त दीवाने
सरसराती
हवा चली झूम के
रुक दीवानी
कर ना मनमानी
राह ये अनजानी
हरे बिछौने
लगे गुदगुदाने
धरा ने ओढ़े
पत्थर ना कंकड़
ना झाड़ ना झंकड
धूसर रंग
आसमां चारपाई
श्याम बिछोना
नरम नरम सी
मेघो ने बिछलाई
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें