नभ में छाईं चारो तरफ
देखो नीर भरी बदली है
धरा ने ओढ़ी एक बार
फिर धानी सी चुनर है।
बादल गरजे बिजली चमके,
उमड़ घुमड़ है मेघा बरसे,
ठहर ठहर मन जाए डर से
नन्ही बून्द पड़े जब सरसे।
महक उठी धरती सारी
माटी की भीनी गन्ध से
बारिश में तन तो भीगा
भीगा मन पिया के संग से।
हरा भरा हरियाला सावन
रंग बिरंगा रंगीला सावन
तीज त्यौहार ऋत मिलन की
आया सखी मन भावन सावन
शीतल मंद पवन चली है
सुगन्धित चली बयार
कुंहु कुंहु बोले कोयलिया
बरसी प्रेम रस फुहार
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