नव उमंगों के दीप जले
उत्साह रूपी कमल खिले
लेकर उमंगों की गागर हम
गीता ज्ञान अक्षरी भरने चले
साथ ही
कृष्ण मुख की वाणी का
उच्चारण अशुद्ध होने ना पाए
सम्भव हो तो परीक्षाएं उतीर्ण
कर हम साधक कहलाये
सीढ़ी दर सीढ़ी हमको
चढ़ना रास आरहा था
अक्षरो व शब्दों का जादू
जिज्ञासुओ को लुभा रहा था
स्वर,विसर्ग,मात्रा, हलन्त का
प्रभाव अगले शब्दो मे पड़ता है
ह्रस्व और दीर्घ अक्षर दोनो का
उच्चारण में असर पड़ता है
सुमधुर पुस्तिका का वाचन
सबको लालायित करता रहा
एकाग्रता से दीदी का पढ़ाना
सचमुच ह्रदय स्पर्शी रहा
तन्मयता से बिना किसी
झुंझलाहट विद्या दीदी ने
हमे खूब पढ़ाया
मनोहर भैया ने भी अपना
काम बखूबी निभाया
प्रभु कृपा हुई गुरु से ज्ञान मिला
अगले स्तर पर प्रवेश का मन किया
गीता परिवार को व्यक्त आभार
हम सभी ने बारम्बार किया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें