भूमिका
जीवन यूँ ही बीत रहा था
खाली खाली रीत रहा था
बचपन की जब आती याद
मन करता मुझे फरियाद
कुछ करने की रहती धुन
सपने भी करते गुन गुन
लिखने के कुछ मौके आयें
अन्धों मे काना राजा कहायें
प्रोत्साहन से बन गईं बात
खूब लिखे लोगों के जजबात
वाटसप का जमाना आया
ज्ञान लोगो ने घर में ही पाया
कलम से बन गई कुछ दूरी
घुमक्कड़ बनना भी मजबूरी
प्रेरणा अगर मिल जाती हैं
रुकी कलम चल जाती हैं
हिन्दी प्रेम मेरा जग जाहिर
भलें ना हो मैं इसमे माहिर
मंच कलम-साधना का मिला हैं
सपनो को जैसे बल मिला हैं
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