*खिड़किया*
चारु- अभी इस लॉक डाउन के कारन,मन अकेले रहते मा पिताजी के लिये बेचेन हो रहा है।
तुम बताओ मै क्या करु।
चमन-तुम्हारी बेचेनी जायज है,पर अभी सुरक्षा की दृस्टी से मै
तुम्हे जाने बोल नही सकता।
चिंता मत करो,अमन और नमन तुम्हारे दोनो भाई ,उसी बिल्डिंग मे है,
एसे समय मे मन मुटाव छोडकर सम्भाल ही लिया होगा उन्होने।
नही तो तुम
एक काम क्यो नही करती,तुम सारी खिड़किया खोल दो।
मै समझी नही,दूर बेठे,मेरे यंहा खिड़किया खोलने से क्या होगा।
तनिक चिढते हुए चारु ने कँहा।
अरे मै उन वॉट्सएप्प की खिड़कियो की बात कर रहा हू,
जो तुम अलग अलग खोल कर सबसे बात करती हो,
आज सबको एक साथ खोल दो
चमन ने मुस्कुराते हुए कहा
तुम दोनो भाईयो और मम्मी पापा को विडियो ग्रुप कालीन्ग करो,
आमने सामने आकर वो इन छोटे मोटे मन मुटाव को भूल कर सहज हो जायेंगे।
कुछ सोचते हुए चारु ने कहा,
हाँ तुम सही कह रहे एक कोशिश तो बनती है।
चमन और चारु की कोशिश रंग लाई
सब के बीच घुल मिल कर बात हूइ ,किसी ने भी अहं को आड़े नही लिया
सच मे व्हाटसएप की इन खुली खिड़कियो से आया झोका, सभी को सुखद सुकून दे गया
शीला अशोक तापडिया
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें