गुरुवार, 10 मई 2012

      कुदरत  हमको सिखा रही ,
अपना सब कुछ  लुटा रही .
पतझड़ वसंत  से सीख  सीख ले 
मन की  आंखे खोल  समझ  ले 
प्राणों का ये  संचार कर रही 
कुदरत  हमको  सीखा रही .......
चिन्ताओ का   ढेर पड़ा हो  
मत भेद  ह्रदय को भेद रहा हो 
थक  हार   कदम  बढने ना पांए 
तब  नव  उमंग  ये जोश  भर रही 
कुदरत  हमको।...............
निनाय्न्वे  के फेर ने पकड़ा 
माया मोह का बंधन   जकड़ा 
जीवन  बना अनबूझ  पहेली 
अनसुलझे प्रश्न  सुलझा रही 
कुदरत  हमको।..............
जब जांए  इसके करीब में 
चिंता  छोड़ आँख  खोल  कर 
मन को अपने  सरल  बना कर 
तब  इश्वर के ये दर्शन  करा रही 
कुदरत हमको ...........
आनंद उमंग का संचार तू  कर ले 
फूली कलिया खिले फूल से 
रग-रग में उत्साह भर ले 
दोस्त  ये अपना बना रही है 
कुदरत  हमको ...........
मन  उपवन में प्रेम फूल  खिला ले 
झरना स्नेह का आज  बहा ले 
शीतल मंद  सुंगंध  पवन  सा 
सबको तू अपना बना ले 
खुसबू प्यार की बरसा रही है 
कुदरत हमको ...............
कुदरत  देती संदेशा यह 
पास  में मेरे तू  रह 
जितना मेरे साथ रहेगा 
तन-मन  दोनों स्वस्थ रहेगा 
राज ये हमको बता रही 
कुदरत हमको बुला रही 
अपना सब कुछ  लुटा रही 

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