वह आई द्वार मेरे,
हाथ पसारे उसने,
याचक बनी द्रिस्तिगत होती,
आंखों में सवाल बहुतेरे ।
आशा उसकी मुझसे कुछ,
कुछ उमीदें लगाई उसने,
पा जाए वह किंचित मुझसे,
चाहा हैं जो उसने ।
पर धन नही उसकी चाहत,
मन व्याकुल, दिल था आहत,
दो बोल उसके सुन लूँ ,
दो बोलो से दे दूँ राहत ।
यह मन भी कितना अजीब हैं,
प्यार की कितनी प्यास इसे,
धन दौलत नही अमृत,
समझ पाते
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