जिन्दगी रेल की भांति दौडती चली जा रही थी।
कुछ बातें मन से उतरती, कुछ मन पर सवारी करती जा रही थी।
कोई रोज की तरह ,तो कोई घटना विशेष हेतु आवागमन कर रहा था।
पीछे छुटते स्टेशन ,पेड़ ,झरने ओर पर्वत ,सभी कल की बीती घटनाये तो थी ।
जो कभी सुखदायी ओर कभी बीते पलो ko na bhoolne deti gahri khai थी।
vichro की गति जब tej होती ,
मन manas anishchista के hichkole khata ।
अपने को niyti के भरोसे छोड़ ,
सब कुछ thik dikhane की कोशिश करता।
जब ticat chekar आता,anrgal bato का karm tut jata।
जीवन रेल मई कई तरह के jaalsaaj आते ,
अपने saman की dukan lgate।
पर अच्छे बुरे को parkha ,समय का mulya chukana है।
जीवन यात्रा की ticat bdi अनमोल है।
smbhal कर रखना इसे मिली बिना मोल है.
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