[1/7, 3:59 PM] Sheela Tapadia Nagpur: श्री
भीगी भीगी सड़के है,
भीगा भीगा तन भी है।
कुछ यादे मतवाली सी,
भीगा भीगा मन भी है।
बचपन में बारिश की बूंदे,
लगती मुझे खिलौना थी।
हाथ न आती कभी तो,
लगती जैसे जादूटोना थी।
बड़ा हुआ तो,रुत सुहानी,
मस्तानी मुझको भाने लगी।
रिमझिम रिमझिम बूंदे जैसे,
मुझसे कुछ बतियाने लगी।
शीतलता अहसास कराती,
गरमी से हुआ किनारा है।
जैसे जमी पर दुखो का
बुझ गया तपता अंगारा है।
छतरी का विश्वास है ये,
हर बरखा से बचा लेगी।
मैं भी निकल पड़ा राहों में,
विश्वास की इन पनाहों में।
शीला अशोक तापड़िया
[3/7, 2:04 PM] Sheela Tapadia Nagpur: योग गुरु
🙏🙏
🌹💐🌹💐🌹
ज्ञान दिया आपने ,
मन पर गहरी छाप है।
अनुशासन लगन से,
नित कराते पाठ जाप है।
सतत मार्गदर्शन से,
मिटता रहा हर ताप है।
प्रकाश ज्ञान का मिला,
ऊर्जा की पदचाप है।
अति विशिष्ठ स्वाध्याय ,
सत्संग की अद्भुत थाप है।
पार होती जीवन नैया
पथप्रदर्शक आप है।
ज्ञान से गुरुदेव आपके ,
अज्ञान ने दूरी ली नाप है।
करत करत अभ्यास के,
दूर होते दुर्गुण और पाप है।
करते हम नमस्कार,
कृपा का अद्भुत प्रताप है।
चरणों मे भक्ति बनी रहे,
ज्ञान देते रहे आप है।
[3/7, 7:22 PM] Sheela Tapadia Nagpur: श्री
नाँव चली थी नाँव चली थी
कभी नाँव चलाया करते थे।
पेपर पन्नो की नाँव बना ,
डबरों में चलाया करते थे।
झाड़ू का तिनका लेकर,
पीछे से धकेला करते थे।
किसकी डूबी किसकी बची,
हार जीत हम करते थे।
पानी झमझम बरसता था,
गढ्ढो में पानी भरता था।
छपक छपक हम करते थे,
कोई क्या कहेगा नही डरते थे।
धुँआधार जब बारिश होती,
छत पर चढ़ भीगा करते थे।
सुबह सुबह शबनम की बूंदे
मोती सा पकड़ा करते थे।
इंद्रधनुष जब दिखता
मन खिल जाया करते थे,
हल्ला करके छत से ही ,
मोहल्ला इकठ्ठा करते थे।
बीमार पड़ोगे मां कहती,
बिल्कुल सुना न करते थे।
जमकर बरखी बरखा तो,
स्कूल की छुट्टी करते थे।
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