*गौर ए गणगोर माता*
गणगौर पर्व राजस्थान के सांस्कृतिक पर्वो में अत्यंत महत्वपूर्ण और बड़ी धूमधाम से मनाए जाने वाला त्यौहार है।यह दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला हर राजस्थानी अपने जातीय पर्व को अवश्य मनाता है। यह पूजन बिना किसी पंडित के,अपनी लोकशैली में सम्प्पन की जाती है। गणगौर ईशर की युगल प्रतिमा के साथ भाईये की पूजा की जाती है।
प्रतिमाएं मिट्टी या काष्ट की बनी होती है
बीकानेर की चांदमल ढड्ढा ,एवम उदयपुर की धींगा की गवर अत्यंत मनमोहक और दर्शनीय है।सामंतकाल में इनकी छवि बहुत भव्य हुआ करती थी।
गणगोर,गवरजा,गौर,गवरल ,गवरादे
आदि नामों से पुकारे जाने वाली देवी की पूजा राजस्थान की माटी से जुड़ा हर व्यक्ति बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ करता है।दाम्पत्य प्रेम के उच्च आदर्शो की शिक्षा देने वाले शिव पार्वती की पूजा*ईशर गणगोर*के रूप में की जाती है।
सुहागन स्त्रियां अटल सौभाग्य एवम कुवांरी कन्याये सुयोग्य वर की कामना से गवर पूजती है। 16 दिन तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत होलिकादहन के साथ हो जाती है।
होलिकादहन के पश्चात बची राख से पिण्डोलीया बनाई जाती है।केसर,कुंकु,गुलाल,दूर्वा फूल आदि से प्रतिदिन पूजा की जाती है,साथ ही गाये जाते है अति कर्णप्रिय लोकगीत। इन गीतों का माधुर्य अमृत घोल देता है।
पूरे राजस्थानी घरो का वातावरण गीतमय हो जाता है।
पूजन की हर विधि के साथ जुड़े है ,अत्यंत मनोहारी गीत।
दूर्वा लाने के लिए माली से बाड़ी याने बगीचा खोलने का अनुरोध"बाड़ी वाला बाडी खोल , बाडी री किवाड़ी खोल"
"गौर ऐ गणगोर माता खोल ए किवाड़ी
बायर उभी छोरिया पूजन वाली"
"अन्न मांगू धन मांगू लांछ मांग लछ्मी
कांई कवर सो वीरो मांगू राई सी भौजाई"
आदि गाकर गवरल से सारे सुखों की कामना कर ली जाती है।
रिश्तों की मिठास भी इन गीतों का अभिन्न अंग है।"म्हारे बाबाजी री जीक म्हारे ताऊजी रे मांडी गणगोर रे रसिया"
उलेखनीय है टिकी रमाकझम टीकी पनकफूल,
मेहंदी लो गई मेहंदी लो,
इये चुंदड़ली रो बाई गवरजा बाई ने कोड"
एवम प्रसिद्ध बड़ी गवर "म्हारी चन्द्र गवरजा भलो ए नादान गवरजा में नख से सिख तक पहने जाने वाले गहनो का वर्णन कर श्रंगार रस की प्रधानता भी बताई गई है
गीत प्रधान इस पूजन में"केशर कुंकु केशर कुंकु भरी रे तलाई"
"ऊँचो चोरों चोंखूंटों जल जमुना रे नीरे मंगाओ जी"
"चंपे री डाली हिंडो मंडयो"
काकड़िये री बेल सदा फल लागे"
म्हारा हरिया ज्वारा लहरियां जवारा"गीतों में जल और प्रकृति से जुड़े रहने का संदेश शुभकामनाओ के साथ दिया गया है।
मिजाजी ढोला जयपुर जाज्यो जी"
म्हारा बीकानेर रा घाट सुघाट
उदियापुर सु आई गणगोर"
आदि गीतों से राजस्थान के शहरों का उललेख माटी से जुड़े रहने का ख्याल बरबस ही मन मे आजाता है।
इस तरह प्रतिदिन 16 बार "गौर गौर गोमती , ईशर पूजे पार्वती "कन्याये गाती है।
तथा "पाटा धो पाटा धो"भी किया जाता है।
अंतिम दिन चैत्र शुक्ल तृतीया के पहले दिन बहु बेटियो को मेहंदी और व्यंजनों ख़िलाकर सिंजारा हेतु लाड़ लड़ाया जाता है।
तृतीया को सभी सुंदर वस्त्र,अलंकार धारण कर गणगोर पूजन, कहानी,नैवेद्य आरती करती है।
सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व है।
शादी के बाद उज्ववन कर गवर को धन्यबाद दिया जाता है।
अंतिम दिन नदी,कुआँ बाबड़ी में गणगोर का विसर्जन कर माना जाता है कि गवर को ससुराल विदा किया है।
सोलह दिन गणगोर के पूजन स्थल को पीहर माना जाता है।
राजस्थानियों द्वारा शोभायात्रा, गोठ आदि का आयोजन बहुत ही धूमधाम से किया जाता है।समाज के गणमान्य बन्धुओ द्वारा स्वागत,पूजा,आरती की जाती है।
इस तरह रिश्तो में मिठास भरते इस सामाजिक पर्व द्वारा एकता भाईचारे के साथ प्रकृति से जुड़े रहने का सुलभ संदेश दिया गया है।
इस बार यह उत्सव 8 अप्रैल को है
शीला अशोक तापड़िया
नागपुर
9371493319
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