शनिवार, 26 जून 2021

कविता अपनी अपनी

 श्री

 कविता अपनी अपनी


पर्यावरण जब शुद्ध हो जाता 

है प्रकृति पा लेती कविता


बून्द बून्द अमृत बन टपका पानी

सूखी धरती  की बन जाता कविता


भीषण गर्मी  पथिक हो प्यासा

मिली पानी की हर बून्द कविता


भूख प्यास  विचलित करती जब

बन जाता रोटी का हर कोर कविता


अपनो से दूरी मिलन की आस अधूरी

दो मीठे बोल उनके बन जाते कविता

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