श्री
कविता अपनी अपनी
पर्यावरण जब शुद्ध हो जाता
है प्रकृति पा लेती कविता
बून्द बून्द अमृत बन टपका पानी
सूखी धरती की बन जाता कविता
भीषण गर्मी पथिक हो प्यासा
मिली पानी की हर बून्द कविता
भूख प्यास विचलित करती जब
बन जाता रोटी का हर कोर कविता
अपनो से दूरी मिलन की आस अधूरी
दो मीठे बोल उनके बन जाते कविता
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