माँ बहुत याद आती हो तुम ,
बचपन में जब तुम खाना खिलाती ,कपडे पहनाती,
अच्छीअच्छी बाते करती ,ध्यान रखती,
तब माँ तेरी कसम कभी समझा ही नही की
खाना,कपड़े,और बातो के साथ,
अच्छे संस्कार भी खिलाती ,पहनाती जा रही थी
बिना किसी कोशिश ,दिखावे के दिए जा रही थी
माँ मेरी माँ आज जब लोग मुझे अच्छा कहते
तो लगता है की इसमें मेरा तो कुछ भी नही,
ये तन ,ये मन,सब कुछ तो तेरा ही दिया है,
अब माँ तेरे आशिर्बाद से यह सब
अगली पीढी को सोप सरल ,सहज होना चाहती हु
माँ तेरा ऋण चुकाना चाहती हु,
और बच्चो की यादो में बस जाना चाहती हु
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