अपने बचपन को बेटी की आदतों में पाया है
घूम घूम कर हर बात में बचपन लौट आया है।
जय श्री कृष्ण!
*बेटी और बचपन*
अठखेलियाँ करना चपल
कूदना-फाँदना उसका
जिससे चहकता घर आँगन
पा लेती फिर, मैं बचपन।
ना पाया जब मनचाहा
ना मिला उसे मन माँगा
जो चेहरे पर आती शिकन
जी लेती मैं, फिर बचपन
नए कपड़ों से प्रेम विशेष
इतरना उसका, उन्हें पहन
खिल उठता जो तन-मन
जी लेती मैं, फिर बचपन
भाई-बहन में गई जब ठन
और दोनों में हुई अनबन
सोच चेहरे पर आया गहन
जी लेती मैं, फिर बचपन
अपनी छवि का रखते ध्यान
कुशलता से करना हर काम
नुक्स रह जाए, नहीं सहन
जी लेती मैं, फिर बचपन
कर देती है उसे दीवाना
सफल होने की ललक
देख उसका दीवानापन
जी लेती मैं, फिर बचपन
नया कुछ करने का मन
तन-मन से करना जतन
देख उसका ये समर्पण
जी लेती मैं, फिर बचपन
शीला अशोक तापड़िया
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